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आदि गुरु शंकराचार्य भजन | आत्मषट्कम्, जिसे निर्वाणषट्कम् कहा जाता है, हिंदू दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित 6 श्लोक से मिलकर बना है।
निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
निर्वाण षटकम्, मूल संस्कृत, हिंदी भावानुवाद और अंग्रेजी में बोलतेचित्र पे | NIRVANA SHATKAM, IN
SANSKRIT, TRANSLATION IN HINDI AND ENGLISH ON BOLTECHITRA
निर्वाण षटकम् – संछिप्त परिचय
आत्मषट्कम्, जिसे निर्वाणषट्कम् कहा जाता है, हिंदू दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित 6 श्लोक से मिलकर बना है। इसमें अद्वैत वेदांत की बुनियादी शिक्षाओं का सारांश, या गैर द्वैतवाद की हिंदू शिक्षाओं का सारांश है। यह 788-820 ई. के आसपास लिखा गया था। ऐसा कहा जाता है कि जब अदि गुरु आठ साल के छोटे बालक थे तब वो नर्मदा नदी के पास अपने गुरु की खोज में भटक रहे थे, वहा द्रष्टा गोविंदा भगवतपादा का सामना उनसे हुआ, जिन्होंने उनसे पूछा, “आप कौन हैं?” बालक ने इन्ही पदों के साथ उत्तर दिया, जिन्हें “निर्वाणषट्कम्” या “आत्मषट्कम्” के रूप में जाना जाता है। स्वामी गोविंदपाद ने अदि गुरु शंकराचार्य को अपने शिष्य के रूप में इसे सुन स्वीकार कर लिया था। इन छंदों को पढना और समझना आत्मानुभूति के लिए बहुत मूल्यवान माना जाता है।
श्लोक 1 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे।
न च व्योमभूमि-र्न तेजो न वायुः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥१॥
हिंदी में :
मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ, न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ। न मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु ही हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥१॥
IN ENGLISH :
I am not mind, intellect, ego or repository of memories. I am not ear, tongue, nose or the eyes. I am not space, earth, fire or air. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥1॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Mano Budhyahankaar Chitani Naaham, Na Cha Shrotra Jihve Na Cha Ghraana netre
Na Cha Vyoma Bhumir Na Tejo Na Vayuh, Chidananda Rupah Shivoham Shivoham
श्लोक 2 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः न वा सप्तधातु-र्न वा पञ्चकोशाः।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायू चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥२॥
हिंदी में :
न मैं मुख्य प्राण हूँ और न ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान) में कोई हूँ, न मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा) में कोई हूँ और न पञ्च कोशों (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय) में से कोई, न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥२॥
IN ENGLISH :
I am not principal life force (prana) or any of the five pranas (Prana, udana, apana, vyan, saman). I am not any of the seven constituents (skin, flesh, fat, blood, muscle, bone, marrow) of the body or any of the five sheaths (annamaya, manomaya, pranamaya, vigyanmaya, anandmaya). I am not speech, hands, feet, genitals or anus. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥2॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Na Cha Praana Sanjno Na Vai Pancha Vaayuhu, Na Vaa Sapta Dhaatur Na Va Pancha Koshah
Na Vaak Paani Paadau Na Chopasthapaayuh, Chidaananda Rupah Shivoham Shivoham
श्लोक 3 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥३॥
हिंदी में :
न मुझमें राग और द्वेष हैं, न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥३
IN ENGLISH :
I am devoid of aversion, attachment, greed, delusion, pride or jealousy. I am beyond four major goals of life, righteousness, wealth, pleasure or liberation. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥3॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Na Me Dvesha Raagau Na Me Lobha Mohau, Mado Naiva Me Naiva Maatsarya Bhaavah
Na Dharmo Na Chaartho Na Kaamo Na Moksha, Chidaananda Rupah Shivoham Shivoham
श्लोक 4 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम् न मंत्रो न तीर्थ न वेदा न यज्ञाः।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥४॥
हिंदी में :
न मैं पुण्य हूँ, न पाप, न सुख और न दुःख, न मन्त्र, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ, मैं न भोजन हूँ, न खाया जाने वाला हूँ और न खाने वाला हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥४॥
IN ENGLISH :
I am beyond virtues, sins, joy or sorrow. I am beyond mantras, pilgrimage, Vedas or yagyas. I am not food, eatable, or its eater. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥4॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Na Punyan Na Paapan Na Saukhyan Na Dukham, Na Mantro Na Tirthan Na Vedaah Na Yajnaah
Aham Bhojanan Naiv Bhojyan Na Bhoktaa, Chidaananda Rupah Shivoham Shivoham
श्लोक 5 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥५॥
हिंदी में :
न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है, न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है, न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥५॥
IN ENGLISH :
I have no fear of death or distinction of caste. I have no father or mother. I am unborn. I have no brothers, friends, master or disciples. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥5॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Na Mrityur Na Shanka Na Me Jaati Bhedah, Pitaa Naiva Me Naiva Maataa Na Janma
Na Bandhur Na Mitram Guru Naiva Shishyah, Chidaananda Rupah Shivoham Shivoham
श्लोक 6 – निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य | NIRVANA SHATKAM – ADI SHANKARACHARYA
संस्कृत में :
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥६॥
हिंदी में :
मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ ॥६॥
IN ENGLISH :
I am beyond all doubts, formless, all-pervading, everywhere and surround all sense organs. I am always established in equanimity. There is no liberation or bondage in me. I am of the form of aliveness, eternal bliss, auspiciousness. I am Shiva. ॥6॥
IN HINGLISH OR PHONETIC :
Aham Nirvikalpo Niraakaara Rupo, Vibhutvaaccha Sarvatra Sarvendriyaanaam
Na Chaa Sangatan Naiva Muktir Na meyah Chidananda Rupah Shivoham Shivoham
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